उदास
Symaisa Lama
गजल
नफुलाको भए बेस हुने रछ मायाका फुलहरु ।
यो मुटुमा सजाएर उसलाई गरेछु ठुलो भुलहरु ।
कुनै दिन मरिमेट्ने मान्छे उ मेरे लागी,,
आज अर्कै अंगाल्यो आँखाबाट रसाउछन मुलहरु ।
नसकिने रैछ तर्न मायारुपी सागर पनि,,
तर्न खोज्दै अघि बढ्दा भत्किदिन्छ पुलहरु ।
जे सोचे जिबनमा त्यो पुरा नभइ दिदा ,,
मन भित्रै गलिसके सपनाका हुलहरु ।।
kalpana
Kalpana Kalpana
ghar ma hudatw ma birami huda nhiko navaya samma aama le mero sirani ko cheu basna xodnu huna tyo rat din mero khyal garnu huntyo medisan khayana bhani karaunu huntiyo pardes vaneko padesnai hudorahexa birami huda pani dine manxe samed vetidain
bp gaire
Bp Gaire Bishnugaire
खुस था मै पहेले जब्से तुझ्को देखा
राहा न गया तेरि तिर्छी नजर मुझे घायल
कर गया जब्से तुझ्को देखा न भुख लग्ती है
न पयस रात दिन तेरि यदो को भुला न सका
bp gaire
Bp Gaire Bishnugaire
केही त भन तिम्रो मन्को गन्थन
म पनि सुन्न चाहान्छु कति म मात्रै
बौलाहा जस्तो हुनु भुक्दै बस्ने
आखिर मरिलानु के नै छर
म पनि सुन्न चहान्छु तिम्रो मन्को गन्थन
कविता
Mahesh Chauhan Chiklana
मैं अगर उतार दूँ
तेरी आँखों का नशीलापन,
तेरे चेहरे की सुन्दरता,
तेरी लहराती जुल्फ,
तेरी चाल की मादकता ।
मैं अगर उतार दूँ
तेरा उभार - सौंदर्य कविता में
तो उम्र भर तड़पेंगें सारे कवि
मेरी कविता के लिये
जैसे मैं तड़प रहा हूँ...
तेरे लिये ।
कविता
Mahesh Chauhan Chiklana
.....भीगी हुई.....
उस दिन तुम,
भीगी हुई,
अपनी माँ के साथ,
सिर पर पानी का मटका उठाए,
आ रही थी ।
तेरे भीगे हुए बाल,
चेहरे पर चिपके हुए से,
कितने प्यारे लग रहे थे...
भीगे हुए कपड़ो में तेरा बदन,
उफ !
मुझे सीने पर हाथ रखना पड़ा ।
उस दम तुमने मेरी तरफ,
तिरछी निगाह से देखकर,
मेरे दोस्तों मेरा,
कितना मान बढा दिया था ।
मुक्तक
Mahesh Chauhan Chiklana
यूँ तो कभी - कभी उससे,हो जाती है मुलाकात भी |
थोड़ी बहुत कभी - कभी उससे,हो जाती है बात भी |
पर अब इन मुलाकातों और बातों में,तब-सी बात नहीं ,
जब उसकी याद में,आँखों में गुज़र जाती थी रात भी ।
उनकै निम्ति
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जीन्दगीका सारा खुसी उनकै लागि साँचे पनि
उनकै निम्ति हरेक पल धड्की धड्की बाँचे पनि
दु:ख पर्दा साथको सट्टा उल्टै लात हाने पनि
त्यै लातले सफल भा छु तिम्ले खुट्टा ताने पनि
तिम्रो जिवन खुसी रहोस मलाइ लात हाने पनि
मेरो मुटु टुक्रा टुक्रा पारि आफ्नो खुसी छाने पनि
ग़नुक
Mahesh Chauhan Chiklana
----''मेरे गुम होने की रिपोर्ट"----
घर वालों को उम्मीद
कि कमाकर दूंगा
पत्नी को उम्मीद
कि प्रेम दूंगा
विभाग वालों को उम्मीद
कि ईमानदारी से करूँगा नोकरी
सब लगाए बैठे हैं उम्मीदें मुझसे
मुझसे क्यूँ नहीं पूछा जाता -
कि मेरी क्या है उम्मीदें ?
सबकी उम्मीदों पर
खरा उतरने की कोशिश में
मुझसे से 'मैं' कहीं खो गया...
कभी जाओ थाने की तरफ
तो मेरे गुम होने की
रिपोर्ट लिखवा आना...
-------- महेश चौहान चिकलाना
कविता
Mahesh Chauhan Chiklana
कैसे दी मैंने उसको अँगुठी
इतराके वो कहती होगी
सहेलियों से छुप - छुपकर
बातें मेरी करती होगी
इतराके वो कहती होगी
मोहल्ले में किसी से तो पुछती होगी
मेरा मकां , मेरी गली
सबसे छुपाकर नाम मेरा
मेहंदी में वो लिखती होगी
इतराके वो कहती होगी
नाम में मेरे अपना नाम मिलाकर
सहेलियों से पुछती होगी पहेली
सबसे जुदा वो चँचल लड़की
मोहल्ले में सबसे हसीं वो अकेली
इतराके वो कहती होगी
---- महेश चौहान चिकलाना
कविता
Mahesh Chauhan Chiklana
मुहल्ले का वो घर,
जिसका किंवाड़ अक्सर,
मुझे देखकर बंद हुआ करता था
सुना है पिछले सप्ताह,
बाबुजी ने खरीद लिया उसे..
बड़ी खुशी हुई सुनकर,
बड़ी उम्मीद लिये,
छुट्टी लेकर पहुँचा घर
शायद किंवाड़ की ओट से दिख जाए
कोई गुलाबी सलवार
या छत्त पर ही दिख जाए
घटाओं में लिपटा हुआ वो षोडषी चाँद
मगर ऐसा कुछ हुआ नहीं
ना किंवाड़ बंद हुआ उसका
ना उस गली से गुज़रने पर
किसी ने जुमले ही उछाले
कितने सुकून कितनी खुशियों का
घर हुआ करता था
वो घर जिसका किंवाड़
मुझे देखकर बंद हुआ करता था
बेगाना था पर अपना-सा लगता था
आज अपना है पर अपना नहीं लगता
कविता
Mahesh Chauhan Chiklana
अखबार पढ़ने का बहुत शौक है उसे
और पढ़ने का ही नहीं, पढ़कर सुनाने का भी
अक्सर मुझे पढ़-पढ़ के सुनाती रहती है
पहले अच्छी लगती थी मुझे
ये आदत उसकी
पर अब डरने लगा हूँ
पहले जब कभी लेट पहुँचता था घर
तो गले में बाहें डाल पुछती थी
जानू ! आज बड़ी देर करदी आने में
अब कभी लेट पहुँचता हूँ घर
तो रोता हुआ पाता हूँ उसे
पुछता हूँ तो किसी पुराने बासी अखबार से
दिखा देती है कोई घटना-दुर्घटना की खबर
आजकल हादसे बहुत पढ़ती है वो
सोचता हूँ अखबार बंद करा दूँ...
ग़नुक
Mahesh Chauhan Chiklana
कुछ इस तरह करती थी वो मोहब्बत मुझे
छोटी - छोटी बातों पे लिखती थी खत मुझे
दोस्तों को नाज़ था मुझपे और मुझे उसपे
लगने लगी थी वो मेरी मेहरबां किस्मत मुझे
अकेले में सोचूँ उसे,लिखुँ उसे,मुस्कुरा दूँ
उससे ही हुई थी ये अजीब आदत मुझे
तमन्ना थी,कभी रुठूँ उससे वो मनाए मुझे
मगर हुई कहाँ उससे कभी कोई शिकायत मुझे
कानों में गूंजती है आज भी उसकी चूड़ियाँ
जीने को उकसाती बहुत उसकी चाहत मुझे
कविता
Mahesh Chauhan Chiklana
जब सुनता हूँ कि उम्र का हर पड़ाव ढलता है ।
तब मुझे मेरा यौवन बहुत खलता है ।
जब वो तुतलाते हुए कुछ बोलता है
जब वो रोने के लिये मुँह खोलता है
जब मेरा बेटा घुटनों के बल चलता है
तब मुझे मेरा यौवन बहुत खलता है ।
जब मेरी माँ बहू के ताने सुनकर बोर हो जाती है
जब वो अपनी मर्जी से हमसे अलग हो जाती है
जब कभी मेरी बूढी माँ का हाथ तवे पर जलता है
तब मुझे मेरा यौवन बहुत खलता है ।
जब रोटी के लिये कोई बच्चा रोता है
जब बचपन में कोई बचपन खोता है
जब कहीं बम धमाको में किसी का घर जलता है
तब मुझे मेरा यौवन बहुत खलता है ।
जब सुनता हूँ कि उम्र का हर पड़ाव ढलता है।
तब मुझे मेरा यौवन बहुत खलता है ।
ग़नुक
Mahesh Chauhan Chiklana
मुझे मेरे हालातों से जुड़ने दो
मुझे उसी मोड़ से फिर मुड़ने दो
तुम साथ नहीं दे सकते उम्र भर
मुझे आज अकेले ही उड़ने दो
कहाँ से कहाँ पहुँचा हूँ ये मत पूछो
अभी मुझे मेरे पेट से लड़ने दो
तुम्हारे काबिल कुछ नहीं मेरे पास
ये कंबल बिछोना फुटपाथ पे सड़ने दो
कविता
Mahesh Chauhan Chiklana
घर की दहलीज पर कदम रखते ही
माँ दिख जाती
अक्सर मेरे ही कामो में उलझी हुई
कभी घर भर में बिखरे हुए
मेरे कपड़ो को समेटती हुई
कभी धोती हुई
कभी इस्त्री करती हुई
घर की दहलीज पर कदम रखते ही
बढ़ जाती है भूख
और माँ बिना पूछे ही परोस देती है थाली
घर की दहलीज पर कदम रखते ही
माँ जान जाती है -
कि मैं थका हूँ
या बीमार हूँ
माँ कितना ख्याल रखती है मेरा
और मैं मूर्ख
घर की दहलीज के बाहर कदम रखते ही
खो जाता हूँ -
उस गुलाबी सलवार वाली के ख्यालों में
ग़नुक
Mahesh Chauhan Chiklana
खिड़की की ओट से मुझको ताकती आँखें
मुझको बहुत याद आती है तेरी आँखें
भूला यारों का चेहरा, अपने भी याद नहीं
जब से मिली है तेरी आँखों से मेरी आँखें
किसी कोरे कागज - सा नज़र आता है
चाँद पे अक्सर तुझे लिखती है मेरी आँखें
न बहार से जी बहलता न जश्ने त्यौहार से
जब तक तुझको देखती नहीं मेरी आँखें
ग़नुक
Mahesh Chauhan Chiklana
बोलती हो झूठ, कहती हो मुझे प्यार नहीं ।
देखकर मुझे जुल्फ झटकना,क्या ये प्यार नहीं
आता जो दिखूं रस्ते में कभी,मोड़ मुड़ जाती हो
जाते हुए मुझे देखना , क्या ये प्यार नहीं
बताती हो सहेलियों को अक्सर मेरी बातें
बातों पे मेरी हँसना , क्या ये प्यार नहीं
दिवाना शहर में तेरा बता कौन नहीं
सताती हो बस मुझे ही,क्या ये प्यार नहीं