Mahesh Chauhan Chiklana
कविता
अखबार पढ़ने का बहुत शौक है उसे
और पढ़ने का ही नहीं, पढ़कर सुनाने का भी
अक्सर मुझे पढ़-पढ़ के सुनाती रहती है
पहले अच्छी लगती थी मुझे
ये आदत उसकी
पर अब डरने लगा हूँ
पहले जब कभी लेट पहुँचता था घर
तो गले में बाहें डाल पुछती थी
जानू ! आज बड़ी देर करदी आने में
अब कभी लेट पहुँचता हूँ घर
तो रोता हुआ पाता हूँ उसे
पुछता हूँ तो किसी पुराने बासी अखबार से
दिखा देती है कोई घटना-दुर्घटना की खबर
आजकल हादसे बहुत पढ़ती है वो
सोचता हूँ अखबार बंद करा दूँ...