Mahesh Chauhan Chiklana

कविता


मुहल्ले का वो घर,
जिसका किंवाड़ अक्सर,
मुझे देखकर बंद हुआ करता था
सुना है पिछले सप्ताह,
बाबुजी ने खरीद लिया उसे..

बड़ी खुशी हुई सुनकर,
बड़ी उम्मीद लिये,
छुट्टी लेकर पहुँचा घर

शायद किंवाड़ की ओट से दिख जाए
कोई गुलाबी सलवार
या छत्त पर ही दिख जाए
घटाओं में लिपटा हुआ वो षोडषी चाँद

मगर ऐसा कुछ हुआ नहीं
ना किंवाड़ बंद हुआ उसका
ना उस गली से गुज़रने पर
किसी ने जुमले ही उछाले

कितने सुकून कितनी खुशियों का
घर हुआ करता था
वो घर जिसका किंवाड़
मुझे देखकर बंद हुआ करता था

बेगाना था पर अपना-सा लगता था
आज अपना है पर अपना नहीं लगता

#अन्य