Mahesh Chauhan Chiklana
कविता
जब सुनता हूँ कि उम्र का हर पड़ाव ढलता है ।
तब मुझे मेरा यौवन बहुत खलता है ।
जब वो तुतलाते हुए कुछ बोलता है
जब वो रोने के लिये मुँह खोलता है
जब मेरा बेटा घुटनों के बल चलता है
तब मुझे मेरा यौवन बहुत खलता है ।
जब मेरी माँ बहू के ताने सुनकर बोर हो जाती है
जब वो अपनी मर्जी से हमसे अलग हो जाती है
जब कभी मेरी बूढी माँ का हाथ तवे पर जलता है
तब मुझे मेरा यौवन बहुत खलता है ।
जब रोटी के लिये कोई बच्चा रोता है
जब बचपन में कोई बचपन खोता है
जब कहीं बम धमाको में किसी का घर जलता है
तब मुझे मेरा यौवन बहुत खलता है ।
जब सुनता हूँ कि उम्र का हर पड़ाव ढलता है।
तब मुझे मेरा यौवन बहुत खलता है ।