Rajesh Kumar Yadav

वक्त मुझ से परे हैं


किस्मत फिर से टकराने लगी
सच के दर से
रास्ते खाली हो गये
वक्त मुझ से परे हैं
मैं अपने आप को खोजनेे लगा
जिंदगी वही सवाल फिर से दोहराने लगी
कुछ शब्द लिखे हैं समझने की कोशिश में
जिसे संजोकर रखा है तुमने
वो तस्वीर हमारी हैं
सच को तो मैंने लिख डाला कागज़ के इन टुकडो़े पर
अब तुम क्या सोच रही हो हाथ लिए नाम कढे रुमालों पर
धरे हथेली गालों पर
राजेश कुमार यादव

#माया / प्रेम