कुमार अरविन्द

हुआ हूं खाक यहां रह गया धुआं मेरा


गजल - कुमार अरविन्द

हुआ हूँ ख़ाक यहां रह गया ' धुआं मेरा |
किसी में दम है तो रोको ये कारवां मेरा |

सभी ये कहते है अक्सर ज़मीन मेरी है |
कोई ये क्यों नही कहता है आसमां मेरा |

बदन से रूह तलक मैं ही बस गया तुझमें |
मिटायेगा तू कहाँ तक बता निशां मेरा |

मेरे लबों से हँसी तू मिटा न पायेगी |
ए ज़िन्दगानी ले कितना भी इम्तिहां मेरा |

नहीं है खौफ कि दुश्मन जहां हुआ कैसे |
कि अब जहां का खुदा खुद है मेहरबां मेरा |

कई हज़ार फफोले हैं पावँ में लेकिन |
खुदा गवाह ' अभी अज़्म है जवां मेरा |

ये और बात कि मेरी ज़बान कट जाये |
मगर बदल नही सकता कभी बयां मेरा |

फकत यही न कि तुमसे ये दिल लगा बैठे |
रोशन तुम्ही से है सारा ये आशियां मेरा |

वो दिल्लगी हुई अरविन्द खत्म सारी पर |
ये दिल भी तो नही भटका कहाँ कहाँ मेरा |

#अन्य