Mahesh Chauhan Chiklana
कविता
अर्धांगिनी !
तुम हो अर्धांगिनी !
तुम अब आ रही हो !
तुम अब आ रही हो तो वो कौन थी ?
जो पिछले सात सालों से मेरे साथ थी
जो रतजगो का आदी बना गई ,
चैन - सुकून लूट गई ,
मुहल्ले में बदनाम कर गई ,
अपना अपना कहकर
मेरे अपनों से मुझे दूर कर गई
वो कौन थी ?
खैर अगर अर्धांगिनी तुम हो
और मेरे जीवन में आ रही हो
तो इतना जानलो
मेरे पास अब कुछ भी नहीं बचा है
जिसे तुम लूट सको |
अगर फिर भी तुम आना चाहती हो
तो मेरे खाली - कोरे जीवन में ,
तुम्हारा स्वागत है |