Mahesh Chauhan Chiklana
कविता
सुहानी धूप है,आँगन में,आओ बैठे हम
ठंड है बहुत,आँगन में,आओ बैठे हम
कब तक बैठोगी शॉल ओढ़े हुए
कब तक लादोगी स्वेटेर का बोझ
शॉल हटादो , स्वेटेर उतार दो
सुहानी धूप है,आँगन में,आओ बैठे हम
ठंड है बहुत,आँगन में,आओ बैठे हम
कुछ खट्टी ईमलीयां लाया हूँ
कुछ कच्चे बेर भी
सुनाऊ शादी के पहले के कुछ पुराने किस्से
सुहानी धूप है,आँगन में,आओ बैठे हम
ठंड है बहुत,आँगन में,आओ बैठे हम
पहली मुलाकात से शादी तक के
तेरी यादों के वो चन्द खुल्ले सिक्के
आओ तुम्हे गिन-गिन के लोटादुँ
सुहानी धूप है,आँगन में,आओ बैठे हम
ठंड है बहुत,आँगन में,आओ बैठे हम
-- महेश चौहान चिकलाना