Mahesh Chauhan Chiklana
ग़नुक
यार मेरी ही रही होगी कोई नादानी शायद
वरना यूँ तो खत्म ना होती ये कहानी शायद
मुहल्ले का हर एक शख्श़ था दीवाना उसका
मगर हमीं पर थी उसको बिजलियाँ गिरानी शायद
अब और गम उठाने की हिम्मत ना रही
पड़ेगी उसकी निशानियाँ अब मिटानी शायद
वो मनाए ना माने,समझाए समझे ना
अब तन्हा ही गुज़रेगी अपनी जवानी शायद
बेवफा वो ही रही हो एेसा भी नहीं "महेश"
तुम्हें ही ना आई होगी कसमें-रस्में निभानी शायद
- महेश चौहान चिकलाना